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कानून नहीं बदला तो हर जापानी का होगा एक ही उपनाम

विवेक कुमार
२६ अप्रैल २०२४

जापान में अगर नियम नहीं बदले गए तो 500 साल में पूरे देश के लोगों का एक ही उपनाम होगा. अब देश में आंदोलन छिड़ा है कि कानूनों में बदलाव किया जाए.

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जापानी शादी
जापान में शादी के बाद एक ही उपनाम अपनाने का कानून हैतस्वीर: Richard A. Brooks/AFP/Getty Images

जापान के एक प्रोफेसर ने शोध के बाद दावा किया है कि साल 2531 तक देश के हर व्यक्ति का उपनाम सातो हो जाएगा. ऐसा देश में शादी से जुड़े एक कानून के कारण है. इस कानून के तहत शादी के बाद पति और पत्नी के लिए एक ही उपनाम अपनाना अनिवार्य है. जापान दुनिया का एकमात्र देश है, जहां आज भी ऐसा कानून लागू है.

तोहोकू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हिरोशी योशिदा ने एक अध्ययन के बाद अनुमान लगाया है कि अगर जापान अपने यहां शादीशुदा जोड़ों को एक ही नाम रखने की अनिवार्यता खत्म नहीं करता है, तो 2531 तक हरेक जापानी ‘सातो-सान' नाम से जाना जाएगा.

योशिदा ने माना है कि उनका अनुमान कई धारणाओं पर आधारित है. उन्होंने कहा कि इस अध्ययन का मकसद मौजूदा व्यवस्था की खामियां उजागर कर उसके बारे में जागरूकता फैलाना है.

सब सातो कहलाएंगे

एक स्थानीय अखबार को दिए एक इंटरव्यू में योशिदा ने कहा, "अगर हर कोई सातो बन जाएगा, तो हो सकता है हमें लोगों को उनके पहले नाम या फिर नंबरों से बुलाना पड़े. मुझे नहीं लगता कि वह रहने के लिए कोई अच्छी दुनिया होगी.”

पिछले साल मार्च में हुए एक सर्वेक्षण के मुताबिक सातो जापान का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला उपनाम है. देश की 1.5 फीसदी आबादी का उपनाम सातो है. दूसरे नंबर पर सुजूकी है. सातो की गणनाओं के मुताबिक 2022 से 2023 के बीच सातो नाम वाले लोगों की संख्या 1.0083 फीसदी बढ़ी है. अगर यही वृद्धि दर रहती है और कानून में कोई बदलाव नहीं होता है तो 2446 तक आधे जापान और 2531 तक पूरे जापान का यही नाम हो जाएगा.

जापानी कानून में प्रावधान है कि शादी के बाद पति और पत्नी का एक ही उपनाम होना चाहिए. हालांकि वे यह नाम चुन सकते हैं लेकिन 95 फीसदी मामलों में महिलाएं ही अपना नाम बदलती हैं और पति का नाम अपना लेती हैं.

बंटी हुई है राय

पारंपरिक और रूढ़िवादी माने जाने वाले जापान में इस कानून को लेकर एकराय नहीं है. 2022 में जापानी ट्रेड यूनियन कॉनफेडरेशन ने एक सर्वे किया था. 1,000 लोगों के बीच किए गए इस सर्वे में 20 से 59 साल के बीच के 39.3 फीसदी लोगों ने कहा कि वे अपने जीवन-साथी वाला ही उपनाम चाहेंगे, भले ही उनके पास अलग नाम रखने का विकल्प हो.

इसके बावजूद कई संगठन नाम संबंधी कानून बदलने की मांग कर रहे हैं. इसके पीछे एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि सुजूकी, वातनबीज और योशिदा जैसे उपनाम पूरी तरह खत्म हो सकते हैं. योशिदा देश का 11वां सबसे आम उपनाम है.

सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) को रूढ़िवादी विचारों का समर्थक माना जाता है. वह इस कानून को बदलने के पक्ष में नहीं है. उसका कहना है कि ऐसा करने से परिवार नामक संस्था की अहमियत घटेगी और बच्चों के बीच उलझन पैदा होगी.

मार्च में छह लोगों ने सरकार के खिलाफ एक मुकदमा दर्ज किया है और शादी के सर्टिफिकेट में अलग-अलग नाम रखने की आजादी मांगी है. उनकी दलील है कि मौजूदा व्यवस्था असंवैधानिक है. हालांकि यह एक लंबी कानूनी लड़ाई है और मुकदमे की सुनवाई अभी शुरू नहीं हुई है.

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